सिनेमा की गम्भीरता कलाकार के चरित्र में उतरने की योग्यता : प्रो. आनंद सिंह
--सिनेमा सामाजिक सरोकारों वाला अर्थपूर्ण होना चाहिए
--प्रयागराज में फिल्म एप्रीशिएशन वर्कशॉप का हुआ शुभारम्भ
प्रयागराज, 06 नवम्बर (हि.स.)। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन अपने एक साक्षात्कार में कहते हैं कि फिल्म दीवार में उनके द्वारा अपनी मां के स्वास्थ्य के लिए मंदिर में भगवान से किया गया संवाद उनके जीवन का सबसे अहम संवाद है। जिसमें वह किरदार को अपने भीतर पूरी तरह आत्मसात कर लेते हैं। यह साफ संकेत है कि कला और सिनेमा कोई हल्की चीज नहीं है। सिनेमा की गम्भीरता उसके कलाकार के चरित्र में उतरने की योग्यता से तय होती है।
यह बातें ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज में प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने पांच दिवसीय फिल्म एप्रीशिएशन वर्कशॉप का शुभारम्भ करते हुए कही। उन्होंने कला और संस्कृति के क्षेत्र में बढ़ रही कॉलेज की गतिविधियों को रेखांकित किया और सिनेमा की बात करते हुए उन्होंने अभिताभ बच्चन का उदाहरण दिया।
प्रो. आनंद शंकर सिंह ने कहा कि फिल्म वर्कशॉप के जरिए प्रतिभागियों को सिनेमा के विविध तकनीकी पहलुओं की व्यापक जानकारी मिलेगी। उन्होंने सिनेमा को भारतीय नाट्य परम्परा से जोड़ते हुए भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का भी उल्लेख किया। कहा कि नाटक जीवन के हर हिस्से में व्याप्त है। नाट्यशास्त्र ने वर्णित है कि ‘लोकोपदेश जननम् नाटकम्’ यानी नाटक वह है जिससे लोक उपदेश जन्म लेता है। यही बात सिनेमा पर भी लागू होती है। सिनेमा सामाजिक सरोकारों वाला अर्थपूर्ण होना चाहिए।
वक्ता डॉ. अंकित पाठक ने ‘सिनेमा : क्या क्यों कैसे ?’ विषय पर सिनेमा की निर्मिति में शामिल उन सभी कलाओं का जिक्र किया जिसके जरिए सिनेमा निर्मित होता है। कहा कि सिनेमा को सातवीं कला का दर्जा दिया जाता है। यह समन्वित कला रूप है जिसका सृजन लोगों के सामूहिक कर्म से होता है। इसमें निर्देशक, अभिनेता, सिनेमेटोग्राफर, संपादक, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार आदि की मुख्य भूमिकाएं होती हैं। उन्होंने बताया कि सिनेमा 1890 के दशक में जन्म लेता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कहानी शब्दों द्वारा निर्मित एक आख्यान की क्रमवार प्रस्तुति होती है, उसी प्रकार सिनेमा भी विभिन्न दृश्यों एवं शॉट्स की क्रमवार प्रस्तुति है।
डॉ्र मनोज कुमार दूबे ने बताया कि फिल्म वर्कशॉप के शुभारम्भ पर सांस्कृतिक समिति की संयोजिका डॉ. गायत्री सिंह, सांस्कृतिक समिति की सदस्य डॉ. अश्विनी, डॉ. जया त्रिपाठी, डॉ. अंजना श्रीवास्तव, डॉ. दीपिका शर्मा और अंग्रेजी विभाग की सहायक आचार्या डॉ. शाइस्ता इरशाद मौजूद रहीं। कार्यक्रम में कॉलेज के लगभग 90 छात्र- छात्राओं ने प्रतिभाग किया। संचालन हिंदी विभाग के शोधार्थी रंजीत कुमार ने किया।
हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/सियाराम
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