Shardiya Navratri 2023 : नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कुष्मांडा की पूजा, जानें पूजन विधि, भोग और कथा

b
WhatsApp Channel Join Now

शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा का पूजन किया जाता है। कहते हैं कि मां कुष्मांडा की पूजा करने स व्यक्ति को सभी प्रकार ​की बीमारियों व रोगों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कुष्मांडा देवी अनाहत च्रक को नियंत्रित करती हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं और इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी और इनका एक नाम आदिशक्ति भी है। आइए जानते हैं नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा विधि और लगाएं उनका प्रिय भोग। 

n

मां कुष्मांडा पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा का पूजन किया जाता है और जिस व्यक्ति पर माता रानी की कृपा होती है उसके जीवन से सभी दुख दूर होते हैं। निरोगी काया पाने के लिए भी मां कृष्मांडा की पूजा की जाती है। साथ ही इनका पूजन करने से जातक को लंबी आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। देवी कुष्मांडा अपने भक्तों के हर तरह के रोग, शोक और दोष को दूर करती हैं। 

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें स्वच्छ वस्त्र पहनें। इस दिन सफेद रंग के वस्त्र पहनने से मां प्रसन्न होती हैं क्योंकि सफेद उनका पसंदीदा रंग है। अगर आपने पूरे नवरात्रि का व्रत रखा है तो माता रानी का ध्यान करें और पूजन आरंभ करें। सबसे पहले मंदिर में स्थापित कलश का पूजन करें और फिर मां दुर्गा की मूर्ति का पूजन करें फिर मां कुष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। पूजा के बाद मां कुष्मांडा की व्रत कथा और आरती जरूर पढ़ें। 

b

मां कुष्मांडा को लगाएं पसंदीदा भोग
कहते हैं कि मां कुष्मांडा को प्रिय भोग मालपुआ है और इसलिए मालपुआ का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा उन्हें हलवा और दही का भोग का भी भोग लगाया जाता है। माता रानी को भोग लगाने के बाद प्रसाद को घर के सदस्यों में बांटें। अगर आपका व्रत है तो प्रसाद ग्रहण न करें क्योंकि नवरात्रि के व्रत में अन्न नहीं खाते। 

n

मां कुष्मांडा की कथा
दुर्गा का चौथा स्वरूप मां कुष्मांडा हैं और इनकी आठ भुजाएं हैं। आठ भुजाओं में कमंडल, धनुष बाण, चक्र, गदा, अमृतपूर्ण कलश, कमल पुष्प, सिद्धियों और निधियां विराजती हैं। मां सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला हैं। पौराणिक मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब माता ने ब्रह्मांड की रचना कर सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति बन गई थीं। यह केवल एक मात्र ऐसी माता है जो सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। इनकी पूजा करके व्यक्ति अपने कष्टों और पापों को दूर कर सकता है। 

हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्‍वाइन करने के लि‍ये  यहां क्‍लि‍क करें, साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लि‍ये  यहां क्लिक करें।

Share this story