Hindu Nav Varsh 2023 : इन महापर्वों के साथ हिन्दू नववर्ष का होता है आगाज, जानिए मान्यता और इसका महत्व 

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22 मार्च 2023 से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2080 का आगाज हो रहा है। इसे नव संवत्सर के नाम से भी जाना जाता है। हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नववर्ष की शुरुआत होती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसमें भी 12 महीनें होते हैं, पहला माह चैत्र और आखिरी फाल्गुन मास होता है। हिंदू नववर्ष का अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है और इसे मनाने का तरीका भी अलग होता है, जैसे  महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक इस दिन को उगादी, पंजाब में बैसाखी और सिंधी चेती चंडी के नाम से मनाते हैं। आइये जानते हैं कैसे लोग इन पर्व को अपने राज्यों में मनाते हैं -

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गुड़ी पड़वा का पर्व

गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को मनाये जाने का विधान है। उदयातिथि के अनुसार गुड़ी पड़वा का पर्व 22 मार्च को मनाया जाएगा। वहीं पूजा के लिए 22 मार्च 2023 सुबह 06:29 से 07:39 का समय शुभ रहेगा। बता दें कि गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी बनाने की परंपरा है। इसके लिए एक खंभे में पीतल के पात्र को उल्टा रखकर इसमें रेशम के लाल, पीले, केसरिया कपड़े बाधे जाते हैं। इसे फूल-मालाओं और अशोक के पत्तों से सजाया जाता है। गुड़ी पड़वा पर लोग सूर्योदय के समय शरीर में तेल लगाकर स्नान करते हैं। घर के मुख्य द्वार को आम या अशोक के पत्ते और फूलों से सजाया जाता है और रंगोली बनाई जाती है। घर के बाहर या घर के किसी हिस्से में पताका लगाया जाता है। इस दिन लोग भगवान बह्मा की पूजा करते हैं फिर गुड़ी फहराते हैं। 

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चेटीचंड या झूलेलाल जयंती

हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया चेटीचंड और झूलेलाल जयंती मनाई जाती है। ये दिन सिंधी समाज के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन से ही सिंधी हिंदूओं का नया साल शुरू होता है। चेटीचंड के दिन सिंधी समुदाय के लोग भगवान झूलेलाल की श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं। चैत्र मास को सिंधी में चेट कहा जाता है और चांद को चण्ड, इसलिए चेटीचंड का अर्थ हुआ चैत्र का चांद। चेटीचंड को अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में जाना जाता है। भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है। कहते हैं प्राचीन काल में जब सिंधी समाज के लोग जलमार्ग से यात्रा करते थे। ऐसे में वे अपनी यात्रा को सकुशल बनाने के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे और यात्रा सफल होने पर भगवान झूलेलाल का आभार व्यक्त किया जाता था। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए चेटीचंड का त्योहार माना जाता है। मान्यता भगवान झूलेलाल की पूजा से व्यक्ति की हर बाधा दूर होती है और व्यापार-नौकरी में तरक्की के राह आसान होती है। 

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उगादी 

उगादी एक तेलुगू पर्व है, जिसे संपूर्ण दक्षिण भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है, दक्षिण भारत में इसे हिंदू नववर्ष के आगमन की ख़ुशी में सेलिब्रेट किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन विष्णु जी ने पृथ्वी पर मत्स्यवतार रूप में जन्म लिया था। इसलिए इस दिन विष्णु जी की परंपरागत तरीके पूजा की जाती है। आंध्रप्रदेश में इस दिन ब्रह्माजी की पूजा होती है। यह दिन बहुत शुभ होता है, इसलिए इस दिन बहुत से व्यवसायी अपनी नये दुकान की शुरुआत करते हैं। नये व्यवसाय के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। लोग अपने-अपने घरों की साज-सज्जा करते हैं। इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्ति होने के बाद नये वस्त्र पहनते हैं। मुख्यद्वार को आम्र पल्लव एवं फूलों से बना तोरण लगाते हैं। घर के चौखट एवं आंगन में रंगोली सजाते हैं। आम्र पल्लव का तोरण इसीलिए लगाते हैं, क्योंकि भगवान शिव के पुत्रों भगवान कार्तिकेय एवं गणेश जी को आम्र-पल्लव बहुत पसंद है। मान्यता अनुसार इससे घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है।इस पर्व पर दक्षिण भारतवासियों के घर में तमाम तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं, लेकिन एक पेय पदार्थ विशेष रूप से तैयार किया जाता है। एक मिट्टी के बर्तन में नीम के फूल, नारियल, गुड़, इमली, कच्चा आम. नमक एवं मिर्च मिलाकर एक विशेष प्रकार का काढ़ा बनाया जाता है, जिसे पचडी  कहते हैं। पूजा के पश्चात सर्वप्रथम यह काढ़ा पिलाया जाता है। माना जाता है कि इस काढ़ा को पीने से ऋतु परिवर्तन में होने वाली बीमारियों की संभावनाएं खत्म हो जाती है.

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