वरुथिनी एकादशी आज, इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से मिलेगी सभी पापों से मुक्ति

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वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धाभाव के साथ व्रत रखता है और विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करता है, तो उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते है वरुथिनी एकादशी की तिथि, महत्व, पूजा विधि और कथा।

वरुथिनी एकादशी तिथि 

एकादशी तिथि की शुरुआत 26 अप्रैल दिन मंगलवार सुबह 01 बजकर 36 मिनट से हो रही है और इसका समापन 27 अप्रैल दिन बुधवार रात्रि 12 बजकर 46 मिनट पर है। ऐसे में व्रत 26 अप्रैल, मंगलवार के दिन रखा जाएगा।

पारण का समय- 27 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 41 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 22 मिनट के बीच होगा।

वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा 

एकबार भगवान श्रीकृष्ण ने वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का महत्व धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाते हुए कहा कि प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज करता था। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन था तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाते हुए उसे घसीटकर ले जाने लगा. तब राजा मान्धाता ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने चक्र से भालू को मार दिया।

चूँकि राजा का पैर भालू खा चुका था इसलिए राजा अपने पैर को लेकर बहुत परेशान हो गए। तब भगवान विष्णु अपने भक्त को दुखी देख कर बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो. तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की विधि विधान से पूजा करो। उसके प्रभाव से तुम्हारे पैर ठीक और बलशाली हो जायेंगे। राजा मान्धाता ने वैसा ही किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। अतः जो भी भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करता है तो उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा वह स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है।

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