माता रानी का आगमन नवमी की बहार
नवरात्री हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। हिंदू मान्यता के अनुसार,शारदीय नवरात्रि का पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मनाया जाता है जिसमें माता रानी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अगले दिन दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है। नवरात्रि को लेकर कहा जाता है कि जो भी भक्त व्रत रखकर पूरे श्रद्धाभाव से मां दुर्गा की उपासना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक माना जाता है।
माता के नौ रूप
शैलपुत्री
ब्रह्मचारिणी
चन्द्रघंटा
कूष्माण्डा
स्कंदमाता
कात्यायनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
इस वर्ष नवरात्री की शुरुआत 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक मनाया जायेगा। 5 अक्टूबर को दशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा।
शारदीय नवरात्रि मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि आरंभ - 26 सितंबर 2022,सुबह 03 बजकर 23 मिनट पर
प्रतिपदा तिथि का समापन - 27 सितम्बर 2022, सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर
घटस्थापना सुबह का मुहूर्त - प्रातः 06.17 से प्रातः 07.55
कुल अवधि - 01 घण्टा 38 मिनट
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त - प्रातः 11:54 से दोपहर: 12:42
एक वर्ष में 4 बार नवरात्री आती है जिसमें मुख्यतः अश्विन और चैत्र मास की नवरात्री की अधिक मान्यता है। दो और नवरात्री माघ और आषाढ़ माह में पड़ती है, जिसमें साधना और गुप्त पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र वैदिक युग के पहले से ही मनाया जाता है। लोग अपने अनुसार माता रानी की आराधना करते हैं। नवमी के दिन कन्या पूजन की भी विधि है जिसमें लोग मां दुर्गा के रूप में छोटी उम्र की कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराते हैं।
इस त्यौहार को मनाए जाने के पीछे बहुत-सी कहानियां व कथाएं प्रचलित हैं।
श्रीराम जी द्वारा रावण वध की कहानी दशहरा वैसे तो अनेक कहानियों से जुड़ा हुआ है लेकिन इसमें मुख्य रूप से श्रीराम जी और रावण की कहानी मूल रूप से प्रसिद्ध है जिसके स्वरूप दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है।
श्रीराम जी के अयोध्या में जन्म से शुरू हुई कहानी से शादी और फिर चौदह वर्ष के वनवास जहां उनका वीर रूप दिखाई पड़ा, रावण द्वारा सीता माता का हरण, उनकी तलाश करते हुए अनेक रक्षकों का वध करना, हनुमान और अन्य वानर सेनाओं की महायोद्धाओं से मुलाकात, सेतु बनाकर लंका तक पहुंचना और नौ दिनों तक महायुद्ध का चलना यह सब हमें राम जी के जीवन में दिखाई देता है। इस बीच श्रीराम का माता दुर्गा की आराधना करना जिसके फलस्वरूप माता की शक्ति और फल प्राप्ति कर दसवें दिन प्रभु श्री राम ने रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की। माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाया।
सर्वगुण सम्पन्न श्रीराम जी एक आदर्श पुरुष के रूप में शूरवीर, साहसी, पराक्रमी, विन्रम, आदर्श भाई, बेटा, पति, राजा के रूप में जाने जाते हैं। आज भी जनता पुरुषोत्तम राम के रूप में उनके आदर्श व्यक्तित्व का अनुसरण करती हैं।
माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध की कहानी
महिषासुर की कहानी एक पौराणिक कहानी है जो एक ऐसे शक्तिशाली राक्षस की कहानी है जिसका सर भैंस का था और जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान स्वरूप ये मांगा की, उसकी स्त्री के हाथों ही मृत्यु हो अन्यथा कोई भी देव, दानव, मनुष्य उसे न मार सके।
ब्रह्मा जी से वरदान पाकर महिषासुर बहुत शक्तिशाली हो गया था और तीनों लोकों में अपना साम्राज्य स्थापित कर हर जगह हाहाकार मचा दी थी। जिसके वध के लिए देवताओं ने शक्ति का आव्हान कर दुर्गा रूप को अपनी ज्योति शक्ति रूप में प्रदान की, मां अस्त्रों शास्त्रों से सजी प्रकट हुई तब देवताओं ने महिषासुर के आतंक से उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना की थी।
माता ने नौ दिन महिषासुर से घमासान युद्ध कर दसवें दिन उसका वध कर दिया था, इस प्रकार अच्छाई की जीत हुई थी जिसके विजय स्वरूप मां दुर्गा की पूजा की जाती है। उनके दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है।
पांडवों से जुड़ी कहानी
महाभारत काल में पांडवों से कौरवों ने चौपड़ खेलने की शर्त रखी थी, जिसमें कौरवों ने उन्हें छल से हरा दिया था और उनका सारा राजपाट ले लिया था। बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास हारने की सजा स्वरूप पांडवों को भुगतना पड़ा। वनवास के बारह वर्ष काटने के पश्चात जब पांडव अज्ञातवास का एक वर्ष बिताने मत्स्य देश का चुनाव कर राजा विराट के यहां वेश बदल कर रहने लगे थे उस समय अपने सभी अस्त्रों शास्त्रों को उन्होंने शमी के पेड़ में छिपा दिया था, ताकि किसी की नज़र न पड़े व सुरक्षित रहे।
दुर्योधन जो उनका चचेरा भाई था उसको शक हुआ कि पांडव मत्स्य देश में छुपे होंगे। इसका पता लगाने के लिए दूतों को भेजा और अपने पिता धृतराष्ट्र के माध्यम से मत्स्य देश पर आक्रमण करवा दिया।
जिसके बचाव में मत्स्य देश के साथ मिलकर पांडवों ने कौरवों की सेना से युद्ध किया। इसके लिए अर्जुन जो मत्स्य के राजा विराट के यहां नर्तकी बृहन्नला के रूप में रहते थे। वह राजकुमार उत्तर के सारथी बनकर अपने अस्त्र शस्त्र लेने शमी के पेड़ के पास गए। वह दिन अज्ञातवास का अंतिम दिन था और विजयदशमी भी उस दिन थी, अर्जुन ने अपने अस्त्रों शास्त्रों से अकेले ही पूरी कौरवों की सेना को हरा दिया था।
ऐसे ही और भी कथा-कहानियां बताई जाती हैं। जगह-जगह पर कई सारी मान्यताएं हैं अलग-अलग तरीके हैं जिसके आधार पर दशहरा पर्व मनाया जाता है।

