वाराणसी में दो भागों में बंटा है ये अद्भुत शिवलिंग, यहां आएं तो जरूर करें दर्शन 

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काशी... नाम सुनते ही भगवान शिव के घर जैसा प्रतीत होता है। हो भी क्यूं ना, उन्हीं का तो घर है काशी और काशी के लोग भी। यहां शिव के हजारों शिवालय है, उन्हीं में से एक है केदारघाट पर विराजमान गौरी केदारेश्वर मंदिर। इस मंदिर में जो शिवलिंग है, उसे देखने पर एक बार तो आपके मन में उत्तरकाशी के केदारनाथ धाम की याद आ ही जाएगी। यहां बाबा का शिवलिंग देखने में बिल्कुल खिचड़ी के रूप में दिखता है। ऐसा होने के पीछे की एक कहानी है और उस कहानी के मुख्य किरदार है मांधाता। ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ के दर्शन करने पर जितना पुण्य नहीं मिलता, उतने यहां दर्शन करने से मिल जाता है।

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मंदिर की पौराणिक मान्यता

इस मंदिर का शिवलिंग बाकी शिवलिंगों से थोड़ा अलग है। यहां का शिवलिंग दो भागों में बंटा है। माना जाता है कि एक भाग में माता पार्वती के साथ भगवान शिव निवास करते हैं। वहीं, दूसरे भाग में माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु निवास करते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यहां की पूजन विधि है, जो पुजारी द्वारा कभी भी सिले हुए वस्त्र पहनकर नहीं की जाती। बिना सीले हुए वस्त्र पहनकर पुजारी चार पहर की आरती करते हैं। बाबा को प्रिय बेलपत्र व दूध गंगाजल के साथ-साथ यहां खिचड़ी की भी भोग लगाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां बाबा स्वयं भोग ग्रहण करने आते हैं।

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ऋषि मांधाता की तपस्या से खुश होकर काशी आए गौरी केदारेश्वर

हमारे भोले से पहले ये स्थान भगवान विष्णु का हुआ करता था। तब यहां ऋषि मांधाता कुटिया बनाकर रहा करते थे। बंगाली होने के कारण ऋषि सिर्फ चावल का ही भोजन करते थे। ऐसे में वे जब खिचड़ी बनाते, तब उसका दो हिस्सा कर दिया करते और एक हिस्सा रोजाना हिमालय पर विराजमान शिव-पार्वती को खिलाने ले जाते। और वापस आकर बचे हुए भाग दो भाग करते। फिर उसमें से एक भाग अतिथियों को खिलाते थे और एक भाग खुद खा जाते। ऋषि मन्धाता रोजाना ऐसा करते थे। एक समय ऐसा आया जब उनकी अवस्था ऐसा करने से जवाब देने लगी। तब बाबा के प्रति असीम प्रेम रखने वाले मांधाता काफी दुखी रहने लगे। यह सब देखकर गौरी केदारेश्वर यहां प्रकट हुए और खुद के हिस्से की खिचड़ी का खुद ही भोग लगाया। फिर बाकी बचे हुए हिस्से का दो भाग कर एक हिस्सा मन्धाता के अतिथियों को खिलाया और एक हिस्सा मन्धाता को। उसी क्षण ऋषि मन्धाता को आशीर्वाद दिया कि आज के बाद से उनका एक स्वरूप काशी में यही वास करेगा। तब से माता पार्वती के साथ बाबा भोले खिचड़ी रूप में यही विराजित हो गए।

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रानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया मंदिर का जीर्णोद्धार

ऐसी मान्यता है कि गौरी केदारेश्वर का यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर से भी पुराना है। लेकिन शिव पार्वती के साथ ऋषि मांधाता के हिमालय चले जाने के बाद इस मंदिर के रख-रखाव ठीक से नहीं हो पाई। फिर कई सालों बाद जब रानी अहिल्याबाई होल्कर काशी आईं और मंदिर के दर्शन किए, तब उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसी के साथ ही मद्रास में एक विशाल भू-खंड चावल की खेती के लिए खरीदा, जिससे यहां भोग लगाए जा सकें और तो और उन्होंने साल के 365 दिन के हिसाब से 365 कमरों की धर्मशाला भी बनवाया।

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औरंगजेब ने किया यहां हमला

मंदिर पुजारी की मानें तो यहां अपने शासनकाल के दौरान मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के लिए यहां हमला कर दिया था। इसका प्रमाण आज भी मंदिर में विराजित नंदी के पीठ पर चाकू के निशान देखने से मिलता है। कहा जाता है कि मंदिर तोड़ने के लिए नंदी महाराज पर चाकू से हमला किया गया था फिर बाबा के चमत्कार के चलते मुगल शासन ने घुटने टेक दिए। भक्ति की अनुठी कहानी सुनाता है कर्नाटक का कोटिलिंगेश्वर मंदिर, कहां से आते हैं मंदिर में इतने शिवलिंग? भक्ति की अनुठी कहानी सुनाता है कर्नाटक का कोटिलिंगेश्वर मंदिर, कहां से आते हैं मंदिर में इतने शिवलिंग?

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कैसे पहुंचे गौरी केदारेश्वर के मंदिर

मंदिर पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट है, जो मंदिर से 27 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन व नजदीकी बस स्टेशन कैंट पर स्थित है, जो यहां से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहीं, मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए आप ऑटो या कोई ट्रैवल एजेंसी से गाड़ी बुक कर सकते हैं। इसके अलावा निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है।


 

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