तिरुपति बालाजी के ऐसे रहस्य जिन्हें जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान, इस मंदिर की है विशेष मान्यता 

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दक्षिण भारत के मंदिर बहुत भव्य एवं प्रसिद्ध है। तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है यह भगवान वि‍ष्‍णु के स्‍वरूप प्रभु वेंकटेश्वर बालाजी का मंदिर है। ये मंदिर दक्षिण भारत में स्थित तिरुमाला की पहाड़ि‍यों पर स्‍थि‍त है। इसके चारों ओर स्थित पहाड़ियां शेषनाग के 7 फनों के आधार पर सप्‍तगिरी कहलाती हैं। इस मंदिर का इतिहास पांचवी शताब्दी से शुरू होता है।

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स्‍वयं प्रगट हुई मूर्ति‍
ति‍रुमला पहाड़ी पर स्‍थि‍त भगवान वेंकटेश्‍वर के मुख्‍य मंदि‍र में स्‍थि‍त बालाजी की मूर्ति को किसी ने नहीं बनाया है। बल्कि यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। तिरुपति बालाजी की मूर्ति पर उनकी ठुड्डी पर चोट का निशान है जहां औषधि के रूप में चंदन लगाया जाता है। बालाजी भगवान के सिर पर असली रेशमी बाल हैं, इन बालों की विशेषता यह है कि इसमें कभी उलझने नहीं पड़ती है और यह हमेशा ही साफ दिखाई देती हैं।

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केशदान की परंपरा

इस मंदिर में केशदान की बहुत प्रसिद्ध परंपरा है। मन्नत पूरी होने पर लोग यहां पर केस दान करते हैं। इसका एक गहन अर्थ भी है कि बालों के साथ अपने अहंकार घमंड और बुराई को समर्पित कर देना। रोज लगभग 20 हजार लोग यहां पर केस दान करते हैं। बालाजी की मूर्ति हमेशा नम रहती है ऐसा क्यों है यह आज तक पता नहीं चल पाया है।

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रोजाना बनते हैं तीन लाख लड्डू

मंदिर में रोजाना तीन लाख लड्डू बनते हैं। इस मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां लोग बहुत पुराने नियमों के हिसाब से रहते हैं उसी गांव के यहां से लाए गए फूल फल मक्खन आदि मंदिर में चढ़ाए जाते हैं। उस गांव का किसी को पता नहीं है और ना ही किसी बाहरी व्यक्ति को उस गांव में जाने की आज्ञा है।भगवान बालाजी के ह्रदय पर महालक्ष्मी विराजमान रहती हैं। माता यहां पर रहती हैं यह तब पता चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान स्नान ध्यान करवाकर चंदन का लेप लगाया जाता है। जब चंदन का लेप हटाया जाता है तो हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है।

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बिना तेल के जल रहा हजारों साल से दीपक 

आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर गर्भ गृह में एक दीपक बिना तेल घी के हजारों सालों से जल रहा है। यह कैसे होता है इसके कारण का पता आज तक पता नहीं चल पाया है। पचाइ कपूर को किसी साधारण प्रतिमा पर लगाने से वह पत्थर धीरे धीरे चटक जाता है लेकिन वेंकटश्वर बाला जी भगवान का चमत्कार ही है कि पचाइ कपूर इनकी प्रतिमा पर लगाने से प्रतिमा पर कोई असर नहीं होता है।

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प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता तुलसी पत्र

अन्य मंदिरों की तरह यहां पर भी भगवान को रोज तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है लेकिन उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दिया जाता। पूजा के बाद उस तुलसी पत्र को मंदिर परिसर में मौजूद एक कुएं में डाल दिया जाता है। जिसे मुड़ कर देखा भी नहीं जाता है। इस मंदिर में मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी होती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दाएं और एक छड़ी है, इस छड़ी के बारे में कहा जाता है की बाल्यावस्था में इस छड़ी से बाला जी की पिटाई की गई थी। इस कारण उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी, जिसकी वजह से तब से आज तक हर शुक्रवार को उनकी ठोड़ी पर चंदन का लेप लगाया जाता है ताकि उनका घाव भर जाए।

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बालाजी में माता लक्ष्मी का रूप है समाहित

भगवान के प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है। मान्यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी जी का रूप समाहित है इसी कारण से ऐसा किया जाता है।जब आप भगवान बालाजी के गर्भ गृह में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में स्थित है वही जब अगर मंदिर के बाहर जाकर देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि मूर्ति दाएं और स्थित है

इस मंदिर के मूर्ति पर जो पुष्प माला चढ़ाई जाती है उन्हें मूर्ति के पीछे फेंक दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इसे देखना अशुभ और पाप है। वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा एक विशेष प्रकार के चिकने पत्थर से बनी है, मगर यह पूरी तरीके से जीवंत लगती है। यहां मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि बालाजी की प्रतिमा का तापमान सदैव 110 फॉरेनहाइट रहता है और प्रतिमा को पसीना भी आता है, जिसे पुजारी समय-समय पर पोछते रहते हैं।

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हर साल करोड़ों रुपये का चढ़ता है चढ़ावा

आपको बता दें कि ये मंदिर सबसे अधिक अमीर मंदिर है। यहाँ हर साल करोड़ों रुपये का चढ़ावा चढ़ता है। मंदिर की कमाई का एक बड़ा हिस्सा भक्तों द्वारा दान किये गये बालों से आता है। तिरुपति मंदिर में भक्त भारी मात्रा में दान करते हैं। भगवान उनसे बहुत प्रसन्न होते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। मंदिर में हर साल करोड़ों रुपये का चढ़ावा चढ़ता है।

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