मां की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए भगवान परशुराम ने इस मंदिर में की थी शिवलिंग की स्थापना, यहां मांगी गई हर मुराद होती हैं पूरी...

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यह भगवान शिव का अतिप्रिय महीना सावन चल रहा है। इस दौरान शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बार में बताएंगे जहां भगवान परशुराम ने अपनी मां की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। कहा जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। आइए जानते है इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और इसकी महिमा के बारे में....

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पास परशुरामेश्वर पुरामहादेव मन्दिर स्थि​त है, जो लोगों की आस्था का केंद्र है। हर साल श्रावण मास की शिवरात्रि पर यहां चार दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इसे कांवड़ मेला कहा जाता है। इस दौरान यहां लाखों की तादाद में कांवड़िए हरिद्वार से नंगे पैर चलकर गंगा जल लेकर आते हैं और महादेव का जलाभिषेक करते हैं। महादेव की भक्ति के आगे इन कांवड़ियों को अपने कष्ट नजर नहीं आते। नंगे पैर यात्रा करते समय कांवड़ियों को न पैरों में छाले पड़ने की चिंता होती है और न ही मॉनसून में पड़ने वाली बारिश की। बस, पुरामहादेव की झलक पाने और उनका जलाभिषेक करने की धुन सवार रहती है।

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परशुराम ने की थी इस शिवलिंग की स्थापना

महादेव का ये मंदिर बागपत जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे बना बना है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहा करते थे। इसी स्थान पर परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि की आज्ञानुसार अपनी मां रे​णुका का सिर धड़ से अलग कर दिया था। इसके बाद पश्चाताप करने के लिए उन्होंने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और शिव जी की घोर तपस्या की थी। परशुराम जी के तप से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया। साथ ही, भगवान शिव ने परशुराम को एक फरसा दिया, जिससे उन्होंने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था। पुरा नामक स्थान पर होने और परशुराम द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना करने के कारण इस मंदिर को परशुरामेश्वर पुरा महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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रानी ने कराया था मंदिर का निर्माण

समय के साथ वो स्थान खंडहर में तब्दील हो गया और शिवलिंग भी कहीं मिट्टी में दब गया। कहा जाता है कि एक बार लणडोरा की रानी घूमने के लिए निकलीं, तो उनका हाथी उस स्थान पर रुक गया। लाख कोशिशों के बाद भी हाथी आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुआ। इस पर रानी को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने उस स्थान की खुदाई करने का आदेश दिया। टीले की खुदाई करते समय वहां से ​ये शिवलिंग प्राप्त हुआ। इसके बाद रानी ने वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया।

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