बहुत खास है कशी का भारत माता मंदिर, जाने क्यों  

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मंदिरों में अमूमन देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा होती है, पर वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में स्थित भारत माता का मंदिर अपने आप में अनूठा है। इस मंदिर में किसी देवी देवता या स्वयं भारत माँ की मूर्ती नहीं स्थापित है अपितु इस मंदिर में बना हुआ है भारत का विशाल नक्शा है जो अखंड भारत वर्ष को दर्शाता है। यह नक्शा भारत के पहाड, मैदानों  महासागरों का प्रतिनिधित्व करता है, इस मंदिर में भारत माता की पारम्परिक मूर्ती नहीं लगी हुई है, पर यह नक्शा काशी की आस्था का केंद्र है और उनके लिए यही असली भारत माता है।

इतिहास
वाराणसी का यह मंदिर बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने बनवाया था, वो खुद लिखते है कि "इस मानचित्र की परिकल्पना संयोगवश मेरे ह्रदय में आयी, जब सन 1913 में जाड़े में करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुम्बई जाने का अवसर मिला,  वहाँ से जहां श्रीमान घोंडो केशव करवे का विधवाश्रम देखने गया, आश्रम में ज़मीन पर मिटटी से भारत माँ का विशाल मानचित्र बने हुए देखा था तो वो मिटटी का ही था पर उसमे पहाड़ियां और नदियां ऊँची नीची बनी हुई थी। उस नक़्शे को देखकर और मन में इच्छा हुई कि ऐसा ही एक मानचित्र काशी में भी बने, सम्भवता यह मेरा संस्कार ही था जो में कुछ दिनों बाद भूल जाता पर संयोगवश मुझे विदेश यात्रा करनी पड़ी , लन्दन के ब्रिटिश म्यूज़ियम में ऐसे अनेक छोटे बड़े मानचित्र देखने को मिले, जिसके बाद भारत में भारत मां के नक़्शे का एक स्थान बनाने का दृढ़ संकल्प लेकर लौटा।

जब भारत गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था, उस वक़्त देश के नागरिकों के लिए भारत माता से जुडी चीज़ उसके दिल से जुडी थी। विदेश से लौटकर शिवप्रसाद गुप्त ने अपने मित्रों और गुरुजनों से बात की तो उन्होंने मिटटी की जगह मानचित्र को संगमरमर से बनवाने की बात कही जो अनादिकाल तक क्षीण नहीं होगा, काशी में शिल्पकारों की खोज शुरू हो गयी और काफी खोजबीन के बाद काशी के शिल्पकार दुर्गा प्रसाद ने यह बीड़ा उठाया और सन 1918 में इसपर कार्य प्रारम्भ कर 5  से 6  साल के अथक प्रयास और परिश्रम से इस मानचित्र को उकेरा, पर अंग्रेज़ों के अत्याचार और कई सारी दुविधाओं की वजह से मंदिर के पट जनसाधारण के लिए नहीं खुल पाये। अंततः सन 1936 की महानवमी के दिन प्रथम दर्शन के उपलक्ष्य में चरों वेदों के चार चार पाठ होकर पूर्णाहूति महात्मा गांधी जी के करपात्रों द्वारा हुई और अगले दिन विजयदशमी के पर्व पर राष्ट्रपित के द्वारा ही इस मंदिर के कपाट जनसाधारण के लिए खोल दिए गए।

इस मंदिर के चारों तरफ बड़ी - बड़ी खिड़कियां है जिनसे प्रकाश आता है, जिससे आने वाली रौशनी में इस मानचित्र की अद्भुत छठा देखने को मिलती है। मंदिर में आने वाली सैलानी इसकी छठा देखकर मंत्रमुग्ध से हो जाते हैं। भारत माँ का यह विशाल मानचित्र वास्तव में श्रीप्रसाद गुप्त की सोच और शिल्पकार दुर्गाप्रसाद के परिश्रम का अद्भुत नमून है। विश्व का यह अकेला भारत माता मंदिर है जिसमे उनकी मूर्ति की जगह अखंड भारत का मानचित्र बना हुआ है।  

इस मंदिर में दिन भर सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ सभी विदेशी नागरिक स्तब्ध रह जाते है की कला का यह अद्भुत नमूना भी हो सकता है जिसकी कोई मिसाल नहीं। मंदिर के मुख्य द्वार पर राष्ट्र गीत "वन्देमातरम" लिखा हुआ है साथ ही अंदर  पहुँचते ही मैथलीशरण गुप्त  द्वारा रचित रचना "मातॄ मंदिर"  लगी हुई है जो उन्होंने भारत माता मंदिर पर लिखी हैं।

स्थान
भारत माता मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में स्थित है और वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन के दक्षिण में 1.5 किलोमीटर और काशी हिन्दू  विश्वविद्यालय से छह किलोमीटर उत्तर में स्थित है।

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