सावन 2022 : काशी का 'महामृत्युंजय मंदिर', जहां काल भी आने से घबराता है, इस मंत्र में गजब की है शक्ति
*ऊं त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनात मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्म*

काशी में भोले हर तरफ विराजते हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में शंकर के अलग-अलग ना जाने कितने रूप हैं, यदि आप दर्शन करने की इच्छा जाहिर कर दें, तो शायद जीवन ही कम पड़ जाए। ऐसे ही महत्वपूर्ण शिवालयों में से एक है महामृत्युंजय मंदिर। काशी के दारानगर इलाके में स्थित महामृत्युंजय मंदिर जीवन के हर कष्ट के साथ ही मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाता है। शिव के इस मंदिर में काल भी आने से घबराता है और मृत्यु शैय्या पर पड़ा व्यक्ति भी शिव के महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति से नया जीवन पाता है, तो आइए सावन के इस पावन मौके पर हम आपको काशी के उस अद्भुत और अलौकिक मंदिर के बारे में बताएंगे ।

यहां दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है। वहीं, इस मंदिर के महंत मोहनलाल दीक्षित ने बताया कि यह स्वयंभू शिवलिंग हैं। उन्होंने बताया कि यह मंदिर कब का है और कितना पुराना है इसका कोई प्रमाण देने वाला नहीं है।

महंत मोहनलाल बताते हैं कि महामृत्युंजय का एक स्वयंभू शिवलिंग बाहर है और महामृत्युंजय का जो विकराल रूप है। उसमें भोलेनाथ आठ हाथों के साथ भक्तों के कष्टों को हरने के लिए विराजमान हैं। हर हाथ में अलग-अलग अमृत कलश के साथ ही माला और आशीष देते हुए बाबा भोलेनाथ भक्तों के हर कष्ट को हरने के साथ ही उनको मृत्यु से होने वाले कष्ट से मुक्ति दिलाने का काम करते हैं। अमृत कलश से भक्तों के जीवन की रक्षा करते हैं। यही वजह है कि काशी के इस महामृत्युंजय मंदिर में आने से यम भी डरते हैं। मार्कंडेय पुराण से लेकर शिव पुराण तक काशी के इस महामृत्युंजय मंदिर का जिक्र मिलता है।

ऐसी मान्यता है कि महामृत्युंजय का जाप मृत्यु पर विजय दिलाने के लिए सबसे बड़ा हथियार है। महादेव के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से मृत्यु तुल्य कष्ट तो समाप्त हो जाता है, साथ ही भक्तों की हर तकलीफ, दुख, दर्द, पीड़ा भी दूर हो जाती है। इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी कथाएं भी हैं जो मृत्यु के मुंह में गए लोगों को वापस लेकर आई है। अकाल मृत्यु का भय भी इस मंदिर में दर्शन मात्र और भगवान भोलेनाथ के चरणामृत का आचमन करने मात्र से ही खत्म हो जाता है।

मंदिर के दूसरे महंत राजेश्वरलाल दीक्षित ने बताया कि इस मंदिर के पीछे कई कथाएं हैं, जिसकी वजह से इस मंदिर का निर्माण हुआ था। वहीं मंदिर प्रांगण में एक कूप है जिसे धन्वंतरि कूप के नाम से जाना जाता है। इस कूप की यह विशेषता है कि इस कूप का पानी किसी भी रोग से निजात दिला सकता है।

आपको बता दें कि इस शिवलिंग का दर्शन करने और इसके जल का आचमन करने मात्र से ही अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि इस मंदिर में 12 महीना 30 दिन महामृत्युंजय का अनुष्ठान जारी रहता है। देश-विदेश में अपनों के जीवन रक्षा के लिए लोग संकल्प लेने के बाद यहां पुरोहितों से अनुष्ठान कराते हैं। कहते हैं कि यदि 40 दिन लगातार इस मंदिर में कोई भी बाबा के दर्शन और कूप के पानी का सेवन कर ले तो उसकी सारी बीमारी और कष्ट दूर हो जाते हैं।

शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञा से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित ‘मृतसंजीवनी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।

कहते हैं जो महादेव की शरण में एक बार आ जाता है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। महामृत्युंजय मंदिर में रोजाना भक्तों की भीड़ ऐसी ही दिखाई देती है कोई अपने रोग आदि से निजात के लिए इस मंदिर में हाजिरी लगता है तो कोई अपने मारकेश ग्रह की दशा को ठीक करने के लिए यहां दर्शन करने आता है। मंदिर में आकर भक्त बाबा से सच्चे मन से जो कुछ भी मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। हो भी क्यों न, आखिर महादेव की नगरी में कण-कण में भगवान शिव का वास है।
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