रविदास जयंती : जीने की नई राह दिखाते हैं संत शिरोमणि रविदास जी के अनमोल वचन और दोहे, जानिए उनसे जुड़ी अनकही बातें
संत रविदास कबीरदास के समकालीन और गुरुभाई कहे जाते हैं। वे बेहद परोपकारी थे और किसी को ऊंचा या नीचा नहीं मानते थे. मान्यता है कि संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमाके दिन हुआ था। आज 16 फरवरी को माघ पूर्णिमा मनाई जा रही है, ऐसे में आज का दिन संत रविदास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। उनकी एक मशहूर कहावत है 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' इसका अर्थ है कि अगर व्यक्ति का मन शुद्ध है, किसी काम को करने की उसकी नीयत अच्छी है तो उसका हर कार्य गंगा के समान पवित्र है। इस कहावत को लोग अक्सर अपनी बातचीत के दौरान बोलते हैं। आइए आज संत शिरोमणि रविदास से जुड़ी कुछ खास बातें जानते है।
– कहा जाता है कि संत रविदास का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था, इसलिए वे जूते बनाने का काम करते थे। वे किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझते थे। इसलिए हर काम को पूरे मन और लगन से करते थे। उनका मानना था कि किसी भी काम को पूरे शुद्ध मन और निष्ठा के साथ ही करना चाहिए, ऐसे में उसका परिणाम भी हमेशा अच्छा ही होगा।
– संत रविदास को कबीरदास का समकालीन और उनका गुरुभाई कहा जाता है. स्वयं कबीरदास ने उन्हें 'संतन में रविदास' कहकर संबोधित किया है. मान्यता है कि कृष्ण भक्त मीराबाई भी संत रविदास की शिष्या थीं। इतना ही नहीं, चित्तौड़ साम्राज्य के राजा राणा सांगा और उनकी पत्नी भी संत रविदास के विचारों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए थे।

– रविदास जी जाति की बजाय मानवता में यकीन रखते थे और सभी को एक समान मानते थे। उनका मानना था कि परमात्मा ने इंसान की रचना की है, सभी इंसान समान हैं और उनके अधिकार भी समान हैं. न कोई ऊंचा होता है और न ही कोई नीचा होता है।
– संत रविदास के शिष्यों में हर जाति के लोग शामिल थे। आज भी वाराणसी में उनका भव्य मंदिर और मठ बना है। जहां देशभर से लोग उनके दर्शन करने के लिए आते हैं।
– संत रविदास की जयंती के दिन मंदिर और मठों में कीर्तन-भजन का विशेष आयोजन किया जाता है। कई जगहों पर झांकियां निकाली जाती हैं. साथ ही कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
संत रविदास ने अपना जीवन प्रभु की भक्ति और सत्संग में बिताया था। उन्हें रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे नामों से जाना जाता है। संत रविदास ने चालीस पदों की रचना की थी जिसे सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया था।

