जानिए कब मनाई जाएगी झूलेलाल जयंती, क्या है शुभ मुहूर्त और महत्व
सिंधी समुदाय के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है झूलेलाल जयंती। इस दिन जल के देवता झूलेलाल का जन्म (Jhulelal Jayanti 2022 Date) हुआ था। । सिंधी समुदाय के लोगों को मानना है कि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा करने से मांगी हुई मन्नत अवश्य पूरी होती है। संत झूलेलाल को वरुण देव, लाल सांई, उदेरो लाल, दरियालाल और जिंदा पीर भी कहा जाता है। मान्यता है कि उन्होंने मनुष्य को एकता, शांति और सत्य का मार्ग दिखाया। आइए जानते हैं कब है झूलेलाल जयंती, शुभ मुहूर्त (Jhulelal Jayanti 2022 Date And Shubh Muhurat) और झूलेलाल के जन्म से जुड़ी रोचक कहानी।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब सिंधी समुदाय व्यापार के लिए जलमार्ग से जाते थे, तो स्त्रियां उनके सकुशल लौटने के लिए भगवान झूलेलाल से मन्नत मांगती थी। जब वे सकुशल घर लौट आते थे तो उनकी जयंती पर भंडारे का आयोजन किया जाता था। आज भी झूलेलाल मंदिर में उनकी अखंड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। यह समाज अल्पसंख्यक होने के बावजूद अपनी संस्कृति व पहचान को बनाए हुए है।
झूलेलाल जयंती 2022 कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह की चंद्र तिथि पर झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। वहीं ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च के अतिम दिनों में या अप्रैल माह के शुरुआती दिनों में झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। इस बार झूलेलाल जयंती 3 अप्रैल 2022, रविवार को है। द्वितीया तिथि 2 अप्रैल 2022, शनिवार को सुबह 11:58 से शुरू होकर 3 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर समाप्त हो रही है।
झूलेलाल जयंती 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
झूलेलाल जयंती 2022 तिथि: 03 अप्रैल, रविवार 2022
चंद्र तिथि की शुरूआत: 2 अप्रैल 2022, शनिवार को सुबह 11:58 से
चंद्र तिथि की समाप्ति: 03 अप्रैल, रविवार को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर
झूलेलाल की जयंती का महत्व
सिंधी लोगों के लिए झूलेलाल जयंती का विशेष महत्व है, भगवान झूलेलाल इस समुदाय के ईष्ट देव हैं। सिंध प्रांत से भारत में आकर बसे लोग इस दिन विधि विधान से अपने ईष्ट देव झूलेलाल की पूजा करते हैं। तथा बाहिराना साहिब के साथ छेज नृत्य किया जाता है और झांकियां निकाली जाती हैं। मान्यता है कि चेटी चंड के दिन झूलेलाल धरती लोक पर आकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
झूलेलाल के जन्म की कहानी
झूलेलाल के जन्म से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है, कहा जाता है कि सिंध प्रदेश के ठट्ठा नगर में एक अत्याचारी राजा राज करता था, उसके अत्याचार से तंग आकर नगरवासियों ने 40 दिनों तक श्रद्धापूर्वक नदी के किनारे पूजन किया, इसके बाद जल देवता ने मत्यस्य के रूप में अवतार लिया और भविष्यवाणी किया कि, वह जल्द ही राजा के अत्याचारों का अंत करने के लिए धरती पर अवतार लेंगे। तथा चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन ठाकुर रत्नराय के घर भगवान झूलेलाल ने जन्म लिया। इस समुदाय के लोगों का मानना है कि भगवान झूलेलाल की कृपा से वह अल्पसंख्यक होने के बावजूद अपनी संस्कृति और पहचान बनाए हुए हैं।

