Sabarimala Temple: 18 सीढ़ियां, हर एक का अपना महत्व… जानें सबरीमाला मंदिर में भगवान अय्यप्पा के दर्शन के लिए कब योग्य बनता है भक्त

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केरल के पतनमतिट्टा जिले में स्थित सबरीमाला मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन कर रहे हैं. देशभर से श्रद्धालु सबरीमाला पहुंच रहे हैं. यहां सबरीमाला अय्यप्पा मंदिर की 18 पवित्र सीढ़ियों का हिंदू परंपरा और सनातन संस्कृति में गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व है. प्रसिद्ध ज्योतिषी और वास्तुकार डॉ. बसवराज गुरुजी ने इस संबंध में बताया कि भगवान अय्यप्पा के दर्शन के लिए इन सीढ़ियों पर चढ़ना केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि आत्म-शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इन 18 सीढ़ियों के महत्व की कई व्याख्याएं हैं.

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सबसे पहली 5 सीढ़ियां
जैसे ही आप शुरुआत की पांच सीढ़ियों पर पैर रखेंगे वो मनुष्य की पांचों इंद्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें आंख, कान, नाक, मुंह और जीभ शामिल हैं. इन सीढ़ियों पर चढ़ते समय भक्त अपनी इंद्रियों को शुद्ध रखने का संकल्प लेते हैं. इसका अर्थ है आंखों से केवल ईश्वर के स्वरूप को देखना, कानों से केवल भजन सुनना, नाक से केवल दिव्य सुगंध को महसूस करना, जीभ और मुंह से केवल शुद्ध शब्द बोलना और केवल सद्भावना व्यक्त करना. पांचों इंद्रियों को नियंत्रित और शुद्ध करना व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

इन 8 चीजों को खत्म करना
पांच सीढ़ियां चढ़ने के बाद 8 सीढ़ियां चढ़ने का नंबर आता है, जो अष्टरागों से जुड़ी हुई है. ये सीढ़ियां आठ दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, पाखंड और शत्रुता शामिल हैं. इन सीढ़ियों पर चढ़ते समय भक्त इन दुर्गुणों को त्यागने और शुद्ध मन से ईश्वर की ओर बढ़ने का संकल्प लेते हैं.

तीन गुणों के प्रति जागरूकता
13 सीढ़ियां चढ़ने के बाद अगली तीन सीढ़ियों का नंबर आता है, जो सत्व, रजस और तमस के तीन गुणों को दर्शाते हैं. सत्व ज्ञान और पवित्रता को, रजस क्रिया और गति को, अज्ञान और जड़ता को दर्शाता है. भक्त इन गुणों को समझने और इनके प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करते हैं.

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अज्ञान से ज्ञान की ओर
16 सीढ़ियां चढ़ने के बाद दो सीढ़ियां बाकी रहती हैं, जोकि अज्ञान पर विजय प्राप्त करने और ज्ञान हासिल करने का मार्ग दर्शाते हैं. यह इस ज्ञान को प्रतिबिंबित करता है कि समस्त धन और संबंध भगवान से ही प्राप्त होते हैं, और ‘मेरा’ होने के अहंकार का त्याग करना आवश्यक है. इस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद ही भक्त भगवान अय्यप्पा के दर्शन के योग्य बनते हैं.

ये 18 सीढ़ियां भक्तों के दुर्गुणों को दूर करते हैं और उन्हें सद्गुणों से भर देते हैं. यह उपवास के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली आत्म-शुद्धि की परीक्षा है. गुरुजी ने सलाह दी है कि जब यह परीक्षा सफलतापूर्वक संपन्न हो जाती है, तो भगवान अय्यप्पा के दर्शन पूर्ण फल प्रदान करते हैं.


 

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