रंगभरी एकादशी आज, बाबा धूमधाम के साथ माता गौरा का कराएंगे गौना

रंगभरी एकादशी का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। प्रतिवर्ष यह एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है, इस वर्ष रंगभरी एकादशी पर्व 3 मार्च यानि आज मनाया जा रहा है। इसे अन्य नाम आमलकी एकादशी से भी जाना जाता है। माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है, जो अगले छ. दिनों तक मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिवजी माता पार्वती को पहली बार काशी में लेकर आए थे। अत: यह एकादशी बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है।
जानिए कैसे मनाते हैं रंगभरी एकादशी
फाल्गुन शुक्ल ग्यारस यानी रंगभरी एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थान में भगवान शिवजी और माता गौरी की मूर्ति स्थापित की जाती हैं। फिर शिव-पार्वती जी की अबीर, गुलाल, पुष्प, गंध, अक्षत, धूप, बेलपत्र आदि से मनपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है, तत्पश्चात माता गौरी और भगवान शिव को रंग-गुलाल अर्पित करके माता गौरी का पूजन करते समय उन्हें श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। एक शुद्ध घी का दीया जला कर, कर्पूर के साथ आरती की जाती है।
रंग-गुलाल से मनती हैं रंगभरी एकादशी
काशी, जो कि भगवान शिव की नगरी हैं, वहां के लोगों के लिए रंगभरी एकादशी का दिन बहुत खास होता है। इस दिन भगवान शिव और माता गौरा, अपने गणों के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। इस हर्षोल्लास के पीछे एक खास वजह यह है कि यह दिन भगवान शिव और माता गौरी के वैवाहिक जीवन में बड़ा महत्व रखता है।
रंग-गुलाल से काशी का नजारा देखते ही बनता है
भगवान शिव की नगरी काशी के लिए रंगभरी एकादशी का दिन बेहद खास होता है। इसदिन पूरा काशी शिवमय हो जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता गौरा, अपने गणों के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करके उनको दूल्हे के रूप में सजाकर गाजे-बाजे, नाचते हुए बाबा विश्वनाथ जी के साथ माता गौरा का गौना कराया जाता है इसी के साथ पहली बार माता पार्वती ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं और काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो जाता है. मंदिर से लेकर गली, शिव के जश्न देखने लायक होती है।
आज से शुरू हो जाता है रंगोत्सव
हर वर्ष की भांति इस साल भी काशी (बनारस) में भोलेनाथ माता पार्वती के साथ रंग-गुलाल से सराबोर नजर आएंगे। यहां रंगभरी एकादशी पर काशी में बाबा विश्वनाथ का यह पर्व धर्म और आस्था के साथ मनायाजाता है। यह पर्व खुशहाल जीवन के लिए बहुत ही आनंददायक और शुभ माना जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करके उनको दूल्हे के रूप में सजा कर गाजे-बाजे के साथ नाचते हुए बाबा विश्वनाथ जी का माता गौरा के साथ गौना कराया जाता है। इसी के साथ पहली बार माता पार्वती ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं और काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो जाता है।
आज के दिन पहली बार बाबा के साथ काशी आयी थी माता गौरा
रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ ने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। यह पर्व खुशहाल जीवन के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। तब से हर वर्ष काशी/ बनारस में भोलेनाथ माता पार्वती के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। फिर माता गौरा का गौना कराया जाता है, तभी से रंगभरी एकादशी पर काशी में बाबा विश्वनाथ का यह पर्व बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है।
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