Kajari Teej 2024: कजरी तीज इस साल कब मनाई जाएगी? अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जान लें व्रत विधि और महत्व

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ज्योतिष शास्त्र में हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत आदि का पालन करती हैं। बता दें कि इस खास दिन भगवान शिव और मां पार्वती की उपासना की जाती है। ऐसे में जानते हैं इस साल कब मनाई जाएगी कजरी तीज, इसका महत्व और पूजा विधि-

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हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त शाम 5 बजकर 10 मिनट से शुरू हो रही है और तिथि का समापन 22 अगस्त दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर किया जाएगा। उदयातिथि के अनुसार कजरी तीज 22 अगस्त 2024 गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 50 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 30 मिनट के बीच रहेगा। वहीं, पूजा का अन्य शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 20 मिनट से लेकर 3 बजकर 35 मिनट के बीच है।

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जानें कजरी तीज का महत्व 
पौराणिक कथाओं की मानें तो कजरी तीज का व्रत सबसे पहले मां पार्वती द्वारा रखा गया था। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने परिवार में सुख-समृद्धि और अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य आदि के लिए व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत का पालन करने से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जीवन में आ रही सभी प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं। करवा चौथ के व्रत की तरह की कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन भी चंद्र देव के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पालन किया जाता है। 

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कजरी तीज पूजा विधि 
कजरी तीज के व्रत में पूरा दिन भूखा रहकर उपवास किया जाता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहल धमोली की जाती है। सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता किया जाता है। बता दें कि कजरी तीज को कजली तीज, सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा के शुभ मुहूर्त से पहले ही मिट्टी या गोबर से दीवरा के सहारे तालाब जैसी आकृति बना लें। उसके पास नीम की टहनी लगाएं। इसके बाद पूजा की चौकी तैयार करें. पूजा की चौकी पर शंकर-पार्वती, तीज माता की तस्वीर स्थापित करें और उनकी विधिपूर्वक पूजा करें। इसके साथ ही सत्तू का भोग लगाएं। नीमड़ी माता की पूजा करें और उन्हें चूनर ओढाएं। नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेंहदी, रोली और काजल से 13-13 बिंदिंया बनाएं। इसके बाद तालाब में दीपक की रोशनी में ककड़ी, नींबू, नीम की डाली, नाक की नथ आदि रख दें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें। 

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