Ganesh Chaturthi 2024 : सारे संकटों से मुक्ति दिलाएगा ये पाठ, बस गणेश उत्‍सव के 10 दिन तक कर लें

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भगवान गणपति के बिना कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ नहीं होता है क्योंकि हिन्दू धर्म में उन्हें प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। पंचदेवों में गणपति का विशेष स्थान है और वे सृष्टि के आदिदेव माने जाते हैं। अगर जीवन में दुख के बादल छटने का नाम नहीं ले रहे हैं, कर्ज में वृद्धि, कार्यों में अड़चन, घर के आंगन में किलकारियों का न गूंजना, मंगल कार्यों में विघ्न आना, जैसी अन्य और कई समस्याओं से परेशान है तो समाधान के लिए नियमित रुप से गणपति जी का ध्यान करना चाहिए। वे विघ्नहर्ता हैं और उनकी पूजा से सभी विघ्न दूर होते हैं। यदि आप भी गणपति जी को खुश करके संकटों से मुक्ति पाना चाहते है, तो भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से यानी कि 7 सितंबर से नियमित रुप से गणेश जी का ध्यान, पूजा और उनके संकष्टनाशन स्तोत्र का पाठ करें। 
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बहुत ताकतवर है संकष्टनाशन स्तोत्र
 संकष्टनाशन स्तोत्र का पाठ गणेशजी की कृपा पाने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है. इस स्तोत्र के माध्यम से हम गणेशजी के बारह पवित्र नामों का जप करते हैं, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और सभी प्रकार की सिद्धियां ( पारंगतता)  यानी कि को प्राप्त करने में सहायक होते हैं। इस गणेश महोत्सव में पूरे श्रद्धा भाव से इन नामों की आराधना करें। 
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संकष्टनाशन स्तोत्र का महत्त्व
 यह स्तोत्र गणेश जी की कृपा प्राप्त करने का अद्भुत सटीक साधन है। संकष्टनाशन स्तोत्र, नारद पुराण में वर्णित है और यह नारद जी द्वारा ही बोला गया है। यह उन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में समस्याओं का समाधान चाहते हैं। इस स्तोत्र में गणेशजी के बारह रुपों का वंदन है।नियमित रूप से गणेश जी का ध्यान करने और स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति दीर्घायु और कामनाओं की सिद्धि प्राप्त करता है। गणेशजी का नित्य ध्यान करने से जीवन के सभी कार्य सफल होते हैं और उनकी कृपा से आयु और ऐश्वर्य बढ़ता है। 
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संकटनाशन मंत्र
 प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु:कामार्थसिद्धये ।।१ ।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।।
तृतीयं कृष्णपिङ्गगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।२।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ।।३ ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।४ ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।५ ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।६ ।।
जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।७ ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ।।८ ।।
इति श्री नारदपुराणे संकटविनाशनं श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।

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