पति की लंबी आयु के लिए इस दिन सुहागिनें रखेंगी वट पूर्णिमा व्रत, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
हिंदू कैलेंडर की प्रमुख तिथियों में से एक है पूर्णिमा तिथि जिसका अपना अलग महत्व बताया गया है। ज्येष्ठ महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का अलग महत्व होता है। इसे वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं में वट सावित्री के व्रत का महत्व करवा चौथ जितना ही बताया गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति के सुखमय जीवन और दीर्घायु के लिए वट वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करती हैं और वृक्ष के चारों और परिक्रमा करती हैं।
यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियों को पड़ता है और दोनों का ही अलग महत्व है। जिस प्रकार वट सावित्री अमावस्या में बरगद की पूजा और परिक्रमा की जाती है उसी तरह वट पूर्णिमा तिथि के दिन भी बड़ी श्रद्धा भाव से पूजन करने का विधान है। आइए जानते हैं वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की शुभ तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत तिथि
पूर्णिमा तिथि आरंभ -13 जून, सोमवार, रात्रि 9:02 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समापन- 14 जून, मंगलवार, सायं 5:21 मिनट पर
उदया तिथि में व्रत रखने का विधान है इसलिए 14 जून के दिन ही पूजन शुभ होगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त14 जून 2022, मंगलवार को प्रातः 11 बजे से 12.15 के बीच । इसी समय में बरगद के पेड़ की पूजा के लिए श्रेष्ठ समय रहेगा।
वट सावित्री पूर्णिमा का महत्व
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि बरगद के पेड़ की आयु सैकड़ों साल होती है। चूंकि महिलाएं भी बरगद की तरह अपने पति की लंबी आयु चाहती है और बरगद की ही तरह अपने परिवार की खुशियों को हरा-भरा रखना चाहती हैं इसलिए यह व्रत करती हैं। वहीं एक अन्य कथा के अनुसार सावित्री ने बरगद के नीचे बैठकर तपस्या करके अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी, इसलिए वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पर बरगद के पेड़ (बरगद के पेड़ के हेल्थ बेनिफिट्स)की पूजा की जाती है।

